tag:blogger.com,1999:blog-4575306618066121453.post6633916791876751947..comments2016-08-03T13:08:07.642+01:00Comments on अपने से बाहर: एक लेखकाना शामअपने से बाहर...http://www.blogger.com/profile/11168612712970631180noreply@blogger.comBlogger3125tag:blogger.com,1999:blog-4575306618066121453.post-48148460654380211452008-11-17T09:33:00.000+00:002008-11-17T09:33:00.000+00:00बेचैनी अच्छी लगी , तनाव ने बांधा भी . अनुभूति को ...बेचैनी अच्छी लगी , तनाव ने बांधा भी . अनुभूति को सच्चाई से रख पाने में सफल भी हुए हैं. इन लम्हों को जीना अक्सर असहज होता है साथ ही तमाशबीन होकर रह जाना भी. लम्हों को थोड़ा पकने दें,कई और संभावनाएं निकल कर आएंगी. थोडी हड़बड़ी का एहसास होता है.Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4575306618066121453.post-48902143479873463932008-11-13T18:03:00.000+00:002008-11-13T18:03:00.000+00:00सामान्य दिन होता तो बात अलग थी, आज तो मेरे भीतर ले...सामान्य दिन होता तो बात अलग थी, आज तो मेरे भीतर लेखक समाया था<BR/><BR/><BR/>वाकई...पर यकीन है कभी न कभी लेखक खासपन छोड़ेंगे...सामान्य होंगे और देखना लेखक हो जाएंगे।मसिजीवीhttps://www.blogger.com/profile/07021246043298418662noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4575306618066121453.post-70581321607569874092008-11-13T16:55:00.000+00:002008-11-13T16:55:00.000+00:00संदेह की कोई वजह तो नजर नहीं आती. एक लेखक के संवेद...संदेह की कोई वजह तो नजर नहीं आती. एक लेखक के संवेदनशील उदगार साफ साफ नजर आ रहे हैं.Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.com