Thursday 21 August 2008

अभिनव बिन्द्राः एक अक्खड़ अमीर?

"पता नहीं क्या समझता है अपने आपको" - कुछ ये सोचते हुए लौटा था मैं जुलाई 2002 की उस शाम को, लंदन से कोई 50 किलोमीटर दूर, सरे काउंटी के छोटे से शहर - बिस्ली - में स्थित नेशनल शूटिंग सेंटर से।

और अभिनव बिन्द्रा के बारे में मेरी ये राय छह साल तक बनी रही।

बात है मैनचेस्टर कॉमनवेल्थ गेम्स की - जहाँ भारत ने तहलका ही मचा दिया था - 32 स्वर्ण, 21 रजत, 19 कांस्य! सबसे कमाल का प्रदर्शन था निशानेबाज़ों का - 14 स्वर्ण, 7 रजत, 3 कांस्य!

पूरा भारत आनंदित था,कि भारत ने कॉमनवेल्थ गेम्स में सिक्का जमा दिया; बिस्ली में जमा सारी भारतीय शूटिंग टीम उत्साहित थी,कि उन्होंने अंतरराष्ट्रीय पटल पर अपनी उपस्थिति का अहसास करा दिया;वहाँ मौजूद सारे भारतीय पत्रकार संतुष्ट थे,कि उनका आना सार्थक रहा।

लेकिन केवल एक शख़्स ऐसा था जो ना आनंदित था, ना उत्साहित और ना संतुष्ट - अभिनव बिन्द्रा।

अंजलि वेद भागवत,राज्यवर्धन राठौड़,जसपाल राणा,समरेश जंग,सुमा शिरूर - सबने ख़ुशी-ख़ुशी बात की। एक सिवा अभिनव के।

इंटरव्यू के लिए गया तो उसने कहा - जो पूछना है जल्दी पूछो, मुझे नहाने जाना है। बेबात की हड़बड़ी का माहौल बनाया उसने, और फिर ऐसे जल्दी-जल्दी बात की, मानो उसका कुछ छूटा जा रहा है। और बोला भी तो क्या बोला - कॉमनवेल्थ में मेडल मिलना कोई बड़ी बात नहीं है, यहाँ तो मुक़ाबला आसान रहता है!

लेकिन इसके बाद देखता हूँ - अगले सात-आठ घंटे तक वो वहीं आस-पास टहल रहा है। मैंने क्रुद्ध निगाहों से घूरा - क्या हुआ,नहाने जानेवाले थे ना? मगर उसकी निगाह कहीं और थी, वो परेशान था।

उसे बांग्लादेश के एक 15 साल के लड़के ने हरा दिया था - आसिफ़ हुसैन ख़ान। बिल्कुल ही मोहल्ले का लोकल लड़का लग रहा था आसिफ़, कम-से-कम वेल-ड्रेस्ड अभिनव के सामने, अभिनव को अपनी हार पच नहीं रही थी, वो उस लड़के से सवाल पूछे जा रहा था, उसकी निगाहों से लगा जैसे उसे आसिफ़ पर संदेह है, कम-से-कम उसकी उम्र पर, वो किसी भी सूरत में 15 वर्षीय किशोर नहीं लग रहा था, तब अभिनव 19 का रहा होगा।

बहरहाल मैं बिस्ली से लंदन लौटा, यही राय मन में बनाए कि - "पता नहीं क्या समझता है अपने आपको"।

ये राय ग़लत नहीं है, इसका विश्वास ओलंपिक शुरू होने से पहले भी तब हुआ जब एक सहयोगी को, जो ओलंपिक पर विशेष सामग्रियाँ जुटा रहा था, ये कहते हुए सुना - सबसे बात हो गई है, राठौड़, अंजलि, समरेश - एक बिंद्रा ही बात नहीं कर रहा।

मगर पिछले सप्ताह जब सुबह-सुबह अभिनव की जीत की ख़बर देखी, तो एकबारगी अपनी राय पर संदेह होने लगा। ये संदेह फिर दफ़्तर जाते ही दूर भी हो गया, जब सबको बोलते सुना - यार पूरा देश नाच रहा है, लोग रो रहे हैं, एक बस अकड़ के बैठा हुआ है तो अभिनव बिन्द्रा।

वो तो किसी से बात कर नहीं रहा था, उसकी माँ मिलीं तो बोलीं - उसने फ़ोन किया था और जब मैंने कहा कि हम मीडिया से बात कर रहे हैं, तो उसने कहा - आर यू क्रेज़ी! फिर उसने अपने दोनों कु्त्तों का हाल पूछा और कहा कि बाद में बात करेगा! पिता से बात की तो वो बोले - दो हज़ार बोतलें मँगवा ली हैं, शैम्पेनें हैं, व्हिस्कियाँ हैं, आओ-पीओ-ऐश करो!

फिर पता चला - उसने घर में शूटिंग रेंज बनाया हुआ है, तीन महीने से विदेश में है, एक कंपनी का सीईओ है, दून और सेंट स्टीफ़ेंस से पढ़ा है।

बस - इतना काफ़ी था। सारे सहयोगियों के चेहरे तमतमा उठे। मेरी राय - कि पता नहीं अपने-आपको क्या समझता है - इसमें एक और राय जुड़ गई - पैसेवाला बिगड़ैल है, अमीर बाप का बेटा।

मुझे राहत मिली - चलो मेरी राय शर्मिंदा होने से बच गई।

फिर उसके बाद इधर-उधर काफ़ी कुछ मिला पढ़ने को जिनका सार यही था - अभिनव घमंडी नहीं, एकांतप्रिय है। वैसे अपने समाज में नायकों के पूजन की परंपरा रही है, तो इसलिए अब पारखी जन अभिनव बिन्द्रा के गुणों को तलाशने और तराशने में जुट जाएँगे - इसमें कोई अचरज की बात नहीं।

मगर अब मैं अपनी राय बदल रहा हूँ। अब मुझे लग रहा है - "शायद समझता है वो अपने-आपको"।

क्यों बदल रहा हूँ मैं अपनी राय - ये अगले लेख में।

8 comments:

Anonymous said...

बड़ी जल्दी में हैं राय बदलने की ? जिसका बाप फक्र से बताता हो कि - उन्हें तब पता चलेगा कि बेता निशानेबाज बनेगा जब बचपन में नौकरानी के सिर पर पानी भरा गुब्बारा रख कर वह निशाना साधता था । हमारे बचपन में कर्णी सिंह टाइप पूर्व जाते थे अब ये नए राजे हैं । पहलवानों और मुक्केबाजों से तुलना तो होगी ।

lata said...

aap bahut achcha likhte hain.

जितेन्द़ भगत said...

अगर आपका लि‍खा सच है तो मुझे अभि‍नव के जीत पर अफसोस-सा हो रहा है। देश मेडल से नहीं ,अच्‍छे इंसानों से बनना चाहि‍ए। बड़ी वि‍डंबना है कि‍ -समरथ के नहिं दोष्‍ा गोसाईं।

Rajesh Roshan said...

जो लिखा है उसकी पुष्टि करने को कोई नही है.... मैं यह नही कह रहा कि आप ने झूठ लिखा है या..... लेकिन आपने अपना परिचय भी कही नही दिया है.... अपने बारे में ब्लॉग प्रोफाइल में कुछ तो लिख दे जिससे पाठक को लगे कि हा मैं किसे पढ़ रहा हू..... बस गुजारिश

अपने से बाहर... said...

राजेश भाई,लेख में कुछ तो तथ्य हैं, माँ-बाप ने जो कहा, वो भी प्रसारित और प्रकाशित हो चुका है, कॉमनवेल्थ गेम्स के स्तर पर अभिनव का कॉमेंट भी ऑन रेकॉर्ड है। रही बात उसके व्यवहार की, तो हाँ - वो मेरा अपना अनुभव है, उसका क्या प्रमाण दिया जा सकता है? मगर आपने पहले ही उदारता दिखा दी, धन्यवाद। रहा अपने बारे में बताने का, तो सचमुच उसकी आवश्यकता है क्या? कहीं पढ़ा था - a writer should be read, not seen or heard...आशा है इसे उद्दंडता ना समझेंगे।

Anonymous said...

@ Bhagat
"अगर आपका लि‍खा सच है तो मुझे अभि‍नव के जीत पर अफसोस-सा हो रहा है। देश मेडल से नहीं ,अच्‍छे इंसानों से बनना चाहि‍ए। बड़ी वि‍डंबना है कि‍ -समरथ के नहिं दोष्‍ा गोसाईं।"

Learn to respect your heroes Gentleman! Desh mein aap jaise achhe insanon ki kami nahin hai. He is first person to achieve this feat in the country. Look at his achievement!! To grant interviews to a journalist is his prerogative...learn to respect that.

सुजाता said...

सुशील और विजेन्द्र न जीतते तो अभिनव के अकेले मेडल की की खुशी कम अफसोस ज़्यादा होता। ज़मीन से जुड़े लोग और अभावग्रस्त जीवन जब जीतता है तो खुशी अपरम्पार हो जाती है।

Anonymous said...

वो बात करे न करे या उसका विशेषाधिकार है, जाहिल जंगलियों को गोल्ड मैडल की जीत कर इतराने का मौका दे दिया यही क्या कम है? ओलंपिक जीत कर कोई गुनाह तो नहीं किया है, जो तुम उसे उसकी इच्छा के विरुद्ध बात करने मजबूर करोगे.