Sunday 30 June 2013

आम आदमी के नाम पर

योगेन दा प्रणाम,
 
मैं कौन हूँ ये बताने का कोई प्रयोजन नहीं, क्योंकि मैं आम ही नहीं अनाम भी हूँ जिसे - मैं - बोलने से संकोच होता है।
 
अभी-अभी लंदन में आपकी सभा से लौटा - आम आदमी पार्टी, यूके - की सभा।
 
केवल सुना, केवल देखा, तौला, परखा।
 
एक छवि थी मन में, जिसकी शुरूआत 89-90 के दशक से होती है जब पहली बार आपको ब्लैक एंड व्हाइ़ट टीवी पर चुनाव के समय देखा था। याद पड़ता है, अमर सिंह भी शायद उसी चुनाव से टीवी पर छाए, और फिर राजनीति में आए थे।
 
आपके लेख निरंतर पढ़ता हूँ। किशन जी के बारे में आपके मन में जो आदर है, उसने भी एक छवि बनाई आपकी क्योंकि किशन जी के लेखों ने भारतीय राजनीति की बुनियादी बातों को समझाने में मेरी बड़ी मदद की।
 
अंतिम बार आपको दिल्ली में 2001 में एक सभा में देखा था, जिसमें प्रभाष जोशी भी वक्ता थे। काम से गया था, मगर आपको चप्पल पहनकर पैदल धूल में जाते देख, काम को भूल आपको देखने लगा एक भक्त की तरह।
 
आज भी अतिउत्साह से गया था, ठीक वैसे ही जैसे मुज़फ़्फ़रपुर में - जॉर्ज, वीपी, रामविलास,चंद्रशेखर, हेगड़े आदि को सुनने जाता था - कभी चक्कर मैदान, कभी कंपनी बाग़, कभी ज़िला स्कूल, या कभी कल्याणी चौराहा।
 
मगर आज आपकी सभा से निरूत्साह लौटा। शिराओं में सनसनी नहीं हुई।
 
कुछ उद्दंड प्रश्न पूछना चाहता था - कि ये कैसी आम आदमियों की पार्टी है जिसके नेता शिकागो, लंदन, बोस्टन के चक्कर लगा रहे हैं?
 
ख़र्चे की बात को एक पल भूल भी जाएँ, तो भी - वक़्त के उपयोग का हिसाब?
 
जिस आम आदमी के पास साँस लेने की फ़ुर्सत नहीं होती, उसके प्रतिनिधि रणभूमि से दूर कर क्या रहे हैं?
 
दिल्ली में आईएएस की तैयारी करनेवाले जिन छात्रों ने सब छोड़ आपकी पार्टी का साथ दिया, वो अच्छी बात है या बुरी?
 
देश को एक कर्मठ ईमानदार आईएएस से अधिक लाभ हो सकता है या मंज़िल तक नहीं पहुँच पाने के बाद दूसरे उपायों से सत्ता तक पहुँचने का चालाक इरादा करनेवालों से?
 
पर नहीं पूछा कोई भी प्रश्न, क्योंकि जैसा कि हर ओर हो रहा है, वैसा ही इस सभा में भी हुआ - बोलनेवाले बहुत हैं, सुननेवाले कम।
 
योगेन दा,ये यू-ट्यूब पर आपके भाषणों की रिकॉर्डिंग देख राजनीति सीखने और फिर ई-देशभक्ति करनेवाले लोग वोट नहीं देंगे। वोट की लाइन में नज़र आएँगे - असली आम आदमी।
 
और लंदन वाले देशभक्त तो बहुत दूर हैं, भारत में रहनेवाले ई-देशभक्त भी वोट नहीं डालते, ये कर्नाटक चुनाव के मत-प्रतिशत से सिद्ध हो चुका है।
 
राजनीति की समझ और संवेदना के लिए आयोजन नहीं, अनुभूति ज़रूरी है। यू-ट्यूब के सागर में उतरने वाले विद्यार्थी पल में भाषण, पल में भजन, पल में मनोरंजन के गोते लगाया करते हैं।
 
ऐसी ही अपरिपक्वता से इस तरह के बयान निकलते हैं जैसा कि आज सुना - 'मैं सबकुछ छोड़कर आपकी पार्टी के लिए काम करने के लिए तैयार हूँ' ; 'यहाँ बहुत सारे इंजीनियर हैं, वो आपके लिए सॉफ़्टवेयर बना सकते हैं' ; 'हमने उस दिन क्रिकेटगिरी की, ओवल मैदान पर' !!!
 
फिर भी - राजनीति के इस विद्यार्थी की शुभकामनाएँ आप सबके साथ हैं। ईश्वर करे आम आदमी के कंधे पर चढ़कर ख़ास बनने की मुहिम सफल हो, और आम आदमी का बोझ हल्का हो।
 
एक और प्रश्न पूछने की धृष्टता करना चाहता था आप, आप की टोपी क्यों नहीं पहनते?
 
- आपका एक अनाम दर्शक/पाठक/सामयिक वार्ता का आजीवन सदस्य

1 comment:

रेणु मिश्रा said...

इस लेख को पढ़ने के बाद आपसे केवल एक प्रश्न की धृष्टता कर रही हूँ कि, इसके बाद और लेख क्यों नहीं लिखे? सही जा रहे हैं, प्लीज लिखना ना बंद करें :)