Sunday, 25 November 2007

अपने से बाहर

पिछले साल-दो साल से नित-नए नामों से पाला पड़ रहा है - नेमडेटाबेस, ओरकुट, माइस्पेस, फ़ेसबुक, आदि-इत्यादि। जानने की कोशिश की तो पता चला, ग़ुम हो चुके दोस्तों की तलाश और नए दोस्तों के निर्माण के उद्देश्य से गढ़े गए ई-उपकरणों के नाम हैं ये सारे। किसी ने कहा, ज़िला-स्कूल के दोस्तों से दोबारा संपर्क हो गया, तो किसी ने कहा, कॉलेज का यार लंदन में ही था, ओरकुट ने मिलवाया।

मन डोला और बोला - काम की चीज़ है, बिछड़े दोस्तों से मिलवाएगी। लेकिन अंतर्मन भी डोला और वो भी बोला - क्या आदिम युग की चिट्ठी-पाती, बाद का टेलीफ़ोन-मोबाइल-एसएमएस और उसके बाद जन्मा ई-मेल यही काम नहीं करवाता? ऐसा तो है नहीं कि हम स्कूल-कॉलेज से निकले और ऐसा एक भी यार-दोस्त ना रहा, जिसके पास हमारे पते ना रहे हों? जिसे दोस्ती निभानी थी, वो तब भी निभाता था, आज भी निभाता है , बुढ़ापे तक निभाएगा।

आख़िर बात समझ में आ गई - ये कंप्यूटरी दोस्ती वाला मामला है। शॉर्टकट की दोस्ती। ई-दोस्ती हम नहीं छोड़ेंगे।

मन-अंतर्मन की लड़ाई में अंतर्मन ही भारी रहा। उसने कहा - ई-दोस्ती, ईज़ी दोस्ती ज़रूर हो, पर पच नहीं रही। सो ई-दोस्ती - अभी नहीं छेड़ेंगे।

मगर इंटरनेटिया भाषा के अबूझे शब्दों से पाला नहीं छूटा। एक और नया शब्द आ टपका - ब्लॉग। सुनाई तो कोई दो-तीन साल पहले दिया था पहली बार,लेकिन इसके सिर-पैर का पता पिछले दिनों लगा।

मन-अंतर्मन का द्वंद्व यहाँ भी चला - कि लिखना है तो अख़बार भरे पड़े हैं, पत्रिकाएँ पड़ी हैं, बस इसीलिए कि वहाँ छपने के लिए मेहनत करनी होगी, प्रपंच करना होगा, मान-मुनव्वल करनी होगी, हो सकता है गालियाँ भी सुननी पड़ें - क्या उससे बचने का सरल उपाय नहीं है ये ब्लॉग? और इससे सस्ता क्या होगा - बिल्कुल फ़्री की चीज़ है।

लेकिन पिछले दिनों दो-तीन मित्रों के माध्यम से ब्लॉग की शक्ति का अंदाज़ा लगा। बहुत सारी ऐसी बातें जानने-सुनने को मिलीं कि जिनके बाद हमने भी सोचा - अपने से बाहर निकलकर देखा जाए। ब्लॉग सागर में डुबकी लगाकर देखा तो जाए।

ब्लॉग का नामकरण, काफ़ी माथापच्ची के बाद हो सका। शीर्षक बच्चन जी की कविता से उड़ाया है -

तू अपने में ही हुआ लीन,
बस इसीलिए तू दृष्टिहीन,
इससे ही एकाकी-मलीन,
इससे ही जीवन-ज्योति क्षीण,
अपने से बाहर निकल देख-
है खड़ा विश्व बाँहें पसार।
तू एकाकी तो गुनहगार।

4 comments:

Sanjeet Tripathi said...

आपका ब्लॉग आज पहली बार देखा। शुभकामनाओं के साथ स्वागत हिंदी ब्लॉगजगत मे।

अपने से बाहर... said...

संजीत जी, उदार शुभकामनाओं के लिए आभारी हूँ, आपका भी ब्लॉग देखा, अच्छा लगा।

rakee said...

Hi,
i have seen this site www.hyperwebenable.com where they are providing free websites to interested bloggers.
I have converted my blog myblogname.blogspot.com to myname.com at no cost.
Have your own brand site yourname.com instead of using free services like yourname.blogspot.com or yourname.wordpress.org.
Have complete control of your website.
You can also import your present blog content to new website with one click.
Do more with your website with out limits @ www.hyperwebenable.com/freewebsite.php
regards
sirisha

Reyaz-ul-haque said...

bhai, kamal kiya hai. achchh blog banaya hai. swagat.

bas jam kar likhte rahiye, tab maja aaye.