आम धारणा है कि हमारे जैसे आमजनों की औकात रत्ती भर भी नहीं होती, कहने को लोकतंत्र है, लेकिन तंत्राधीशों से पाला पड़ते ही लोकतंत्र-वोकतंत्र चला जाता है तेल लेने! लेकिन पिछले दिनों कुछ अलग हुआ, एक आम आदमी ने तंत्राधीशों के पास गुहार लगाई, और ना केवल उसकी सुनवाई हुई, बल्कि कार्रवाई भी हुई, बल्कि बदले में आभार भी मिला।
कहानी कुछ यूँ बनती है कि पिछले महीने की एक शाम आम आदमी का खाना-वाना खाकर गाना-वाना सुनने का दिल आया,चैनलबाज़ी शुरू हुई, एक चैनल पर आकर रिमोट के बटनों पर जारी एक्यूप्रेशर बंद हुआ, पर्दे पर एक चैनल आकर ठहर गया, मुफ़्त चैनल है, सो पॉपुलर है। ब्रिटेन में भारतीय चैनलों को देखने के लिए सोचना भी पड़ता है, क्योंकि इसके लिए पैसे लगते हैं, तो सोचना तो पड़ता ही है, कि चैनल हर माह आपके दस पाउंड हड़प ले, इसका हक़दार है कि नहीं।
बहरहाल जिस चैनल की चर्चा हो रही है, वहाँ गानों पर गाने चल रहे थे, कभी द्रोणा-कभी फ़ैशन-तो कभी सज्जनपुर। और फिर वही हुआ जो अक्सर होता है,शुद्ध बंबईया गानों के बीच एक अशुद्ध म्यूज़िक वीडियो की घुसपैठ! अभिषेक-अक्षय-सलमान और प्रियंका-बिपाशा-करीना के गानों के बीच ना जाने कौन लोग, कहाँ के लोग, और क्या करते हुए लोग - आते हैं, नाच-गाकर भाग जाते हैं, आम आदमी को मजबूरन झेलना पड़ता है।
तो उस रात ऐसा ही हुआ, घुसपैठ हुई। जींस-टीशर्ट पहने और उल-जुलूल बाल बनाए या बिखेरे, दो लड़कों ने गाने की कोशिश शुरू कर दी, गाने के बोल थे - "लेट्स यू-एन-आई-टी-वाई, लेट्स पी-ए-आर-टी-वाई" - यानी आओ यूनिटी करें और पार्टी करें। और ये यूनिटी किसकी? भारत और पाकिस्तान की? यूटोपियाई सोच!!!
लड़के जहाँ गा रहे थे वो कोई छोटी हॉलनुमा जगह थी, कोट-पैंट-टाई में सज्जित लोग बैठे थे, चेहरों के भाव ऐसे, मानो गीत-संगीत की महफ़िल में नहीं विश्वव्यापी आर्थिक मंदी की चर्चा के लिए बैठे हों। तो दीवार के साथ सटी कुर्सियों पर ये सज्जन बैठे थे, दीवारों पर दुनिया भर के एकता और मैत्री के राग अलापते पोस्टर और झंडे - तिरंगे,चाँद-तारे और यूनियन जैक। आगे कमर थिरकाते, गाने की कोशिश करते दो नौजवान - लेट्स यू-एन-आई-टी-वाई, लेट्स पी-ए-आर-टी-वाई!!!
तभी एक हाथ में भारत और पाकिस्तान का ध्वज लिए, कदमताल करती, छोटी स्कर्ट पहने, डांस करने को आतुर, थिरकती हुई दो बालाओं ने हॉल में प्रवेश किया...और...हा दुर्भाग्य - भारत का उल्टा तिरंगा!!!
बहरहाल उसी उल्टे तिरंगे को बाला ने पाकिस्तानी तिरंगे से यूँ छुआया जैसे राम-भरत गले मिल रहे हों।
आम आदमी को काटो तो ख़ून नहीं, इतनी भारी-भरकम जनता बैठी है, उनके सामने गाने की शूटिंग हुई, एडिटिंग हुई, चैनल से पास करवाया गया, अब एयर भी हो रहा है और किसी ने नहीं देखा! और ये तब जबकि गाने के असल हीरो भारत-पाकिस्तान हैं!!!
अगले दिन चैनल लगाया, फिर वही बेशर्म तमाशा चल रहा है। अब आम आदमी के आत्मसम्मान और आत्मगौरव का तो पता नहीं, मगर क्रोध ज़रूर जाग गया जो पिछले लंबे समय से बंबईया महफ़िलों में इन अज्ञातप्राणियों की घुसपैठ पर उबल रहा था।
आम आदमी ने भारतीय उच्चायोग की वेबसाइट खोली, वहाँ से पते जुटाए और एक ई-मेल लिखा - लंदन स्थित भारत के उच्चायुक्त को, उप-उच्चायुक्त को, ब्रिटेन के तमाम वाणिज्यिक दूतावास अधिकारियों को, सांस्कृतिक मंत्री को, हिंदी अधिकारी को और प्रेस अधिकारी को - घटना का वर्णन, चैनल का पता ठिकाना, और परिचय - एक आम भारतीय नागरिक।
ई-मेल भेज दिया गया, लेकिन उसका ना कोई लिखित जवाब आया ना ही ऑटोमेटेड जवाब...
दो सप्ताह बाद एक ई-मेल आया है भारतीय दूतावास से - "...आपको ये बताना है कि आपकी शिकायत के बाद हमने चैनलवालों से संपर्क किया, उन्होंने अपना अपराध स्वीकार कर लिया है और तत्काल गाने को हटा लिया है। आपने हमें इस घटना के बारे में बताया, हम इसके लिए आपके आभारी हैं..."
आम आदमी को एक पल के लिए लगा कि आम धारणा सत्य तो होती होगी ही, लेकिन उसे ध्रुवसत्य मान बैठते तो शायय ये ख़ास अनुभव ना होता।
3 comments:
शानदार पोस्ट..आपकी लेखन शैली कमाल की है.
धन्यवाद आम आदमी का.
आम धारणा को ध्रुवसत्य मानने की ज़रूरत भी नहीं है.
अनंत समुद्र को निहारता हुआ कहीं ये शख्स अनवर जमाल तो नहीं। पता नहीं क्यों लगता है कि ये जमाल का कमाल
Post a Comment