Thursday, 17 January 2008

माई फ़्रेंड इमैनुएल

मुस्कुराने में किसी का कुछ जाता नहीं, फिर भी बिना बात कोई मुस्कुराता नहीं।

मगर कुछ चेहरे बेबात मुस्कुराते हैं। वैसे मुस्कुराने के लिए तो, हम-आप भी मुस्कुराते हैं। कभी असली, तो कभी नक़ली मुस्कुराते हैं। लेकिन कुछ चेहरे सचमुच मुस्कुराते हैं। मन से मुस्कुराते हैं। हरदम मुस्कुराते हैं।

ऐसा ही एक चेहरा था इमैनुएल का। लंदन में हमारे दफ़्तर की कैंटीन के काउंटर पर बैठनेवाला इमैनुएल। किसी को याद नहीं कि कभी उसे बिना मुस्कुराहट के देखा हो।

खिली हुई मुस्कुराहट थी इमैनुएल की। एकदम बच्चों के जैसी - जिनकी खिलखिलाहट देख, शोक-शिकायत से बुझे चेहरों या ज्ञान-गुरूत्व से लदे चेहरों पर भी बिना टिकट कटाए मुस्कुराहट तैर जाती है।

इमैनुएल ऐसा ही था। नाइजीरिया का रहनेवाला। शुद्ध अफ़्रीकी,काला। उम्र कोई तीस-पैंतीस के बीच। लंबा क़द-भरा बदन-गोल चेहरा। हरदम रात में दिखता कैंटीन में। कोट-पैंट में बना-ठना। कभी कैंटीन के काउंटर पर बैठा रहता, कभी खाने-पीने की चीजों का ध्यान रख रहा होता। और नज़र मिलती नहीं कि मासूम मुस्कुराहट के साथ पूछ बैठता - "हेल्लो माई फ़्रेंड, हाउ आर यू?"

उसकी मुस्कुराहट को सब नोटिस करने लगे थे। इतना कि हम मज़ाक में कहते - अगर कल कोई आकर कहे कि इमैनुएल मर गया, तो भी हम उसका मुस्कुराता ही हुआ चेहरा याद करेंगे...और मुस्कुराएँगे।

कैंटीन में काम तो बहुत लोग करते थे - गोरे-काले, मर्द-औरत, यूरोपियन-एशियन-अरब-अफ़्रीकन। लेकिन इमैनुएल में कुछ ख़ास था। वो बला का मेहनती था। उसके हाथ में अक्सर कोई किताब रहती या अख़बार।

वो लॉ की पढ़ाई करता था। दिन में पढ़ाई करता और रात में कैंटीन में काम करके अपना गुज़ारा निकालता। और रात में, जो भी समय होता उसमें वो पढ़ता रहता। पिछले तीन-चार साल से देख रहे थे सब उसे, ब्रिटिश क़ानून की मोटी किताबों से जूझते। उसने बताया कि वो क्रिमिनल लॉ में स्पेशलाइज़ कर रहा है।

मगर इमैनुएल के साथ संपर्क तो उसी तरह का था जैसा कि अख़बार-मैग्ज़िन,सब्ज़ी-समोसा लेनेवालों के साथ होता है। चाहे बरसों एक ही दूकान से सब्ज़ी लेते हों, हफ़्ते में दो-तीन दिन मिलते हों, लेकिन रहता तो वो स्टोरवाला ही है-तरकारीवाला ही है, संबंध तो नहीं बन जाता उससे? तो इमैनुएल भी कैंटीनवाला ही था। कितनी बात होती? हाय-हेलो-थैंक्यू, या बहुत हुआ तो - आज ठंड है-आज गर्मी है, एक घंटे में शिफ़्ट ख़त्म हो जाएगी-आज मेरी अंतिम नाइट शिफ़्ट है...इसी तरह के वाक्यों में बँधी बातें होती थीं इमैनुएल से। पिछले तीन-चार साल से।

इस साल के पहले हफ़्ते की बात है। रात के दो बज रहे होंगे। काम ख़त्म कर कैंटीन भागा। जल्दी से कुछ हल्का-फुल्का बटोरने। भूख लगी थी, काम के चक्कर में खा नहीं पाया था ठीक से। घर लौटकर सीधे खाट पर कंबल तान लूँ, इसलिए सोचा पहले कैंटीन से कुछ दाना चुग लिया जाए।

तभी देखा कैंटीन में एक टेबुल पर काले फ़्रेम में रखी एक तस्वीर रखी है। एक डायरी भी है साथ में, उसपर कलम रखी है। मैंने तस्वीर को देखा - वहाँ इमैनुएल का चेहरा था। मुस्कुराता हुआ। कुछ देर देखता ही रह गया उसे। फिर तस्वीर के बगल में कुछ पंक्तियाँ लिखी देखीं। उनमें बताया गया कि क्रिसमस के दौरान इमैनुएल बीमार हो गया था। वो उबर नहीं पाया। उसकी मृत्यु हो गई।

मैं कैंटीन से चुपचाप वापस चला आया। ना डायरी में संदेश लिखा, ना उसकी तस्वीर देखी।

मुझे रह-रहकर मज़ाक में बोली अपनी बात याद आ रही थी - "कल कोई आकर कहे कि इमैनुएल मर गया, तो भी हम उसका मुस्कुराता ही हुआ चेहरा याद करेंगे...और मुस्कुराएँगे।"

मुझे इमैनुएल का मुस्कुराता चेहरा ही याद आया...लेकिन मैं मुस्कुरा ना सका...शायद इमैनुएल होता तो मुस्कुराता...बेबात मुस्कुराता...

2 comments:

अनामदास said...

बहुत सादा, बहुत सुंदर और आपका लिखा ढेर सारा पढ़ने की इच्छा जगाने वाला.

Kumar Padmanabh said...

जी यदि आपका ई-मेल मिले तो खुल के बताउँ. वैसे आप मुझे इस ई.मेल [ mishrapadmanabh[AT]yahoo.co.in ]से सम्पर्क कर सकते हैं.